कैसे नवग्रहों के नौ रत्न बीमारियों को दूर करने में सहायक होते है?

कैसे नवग्रहों के नौ रत्न बीमारियों को दूर करने में सहायक होते है?
nine gems of the Navagrahas helpful in curing diseases

किसी भी बिमारी का इलाज केवल दवाई से ही होना चाहिए,  यह बात हमारी प्राचीन मान्यतों के खिलाफ है। दवाइयों के सेवन से हमारी जीवन शक्ति कम होती है। योगासन, प्राणायाम, धातु, सोना चांदी, लोहे का पानी और भी ऐसी बहुत सी चीजे है जिसके उपयोग से हम हमारे शरीर में होने वाली बीमारियों का उपचार कर सकते है। आज के लेख  में ऐसा ही हम आपको बताएगे की कैसे नव रत्नों से हमारी बिमारी को कोसो दूर भगा सकते है।

अक्सर हमने इस बात का जिक्र तो सुना ही होगा कि गौमूत्र से बहुत सी बीमारियों का इलाज किया जाता है। अंकुरित चने मूंग एवं मेथी दाने को भोजन में लेने से अधिक पानी पीने से आदि यह सभी ऐसे प्रयोग है जो कि यथाशीग्र ही लाभ देते है।एक-एक गमले में एक-एक मुठ्ठी गेहूं छोड़कर एक-एक दिन छोड़कर सात गमलों में जुआरे बोए जाएं। इन जुआरों के रस से टी.बी., कैंसर जैसी बीमारियों को भी दबाया जा सकता है। हमारे विश्व प्रसिद्ध ज्योतिष ने रत्नों से भी कई प्रकार की बीमारियों का उपचार करने के बारे में उल्लेख किया है। तो जानिए कैसे नव रत्नों से आप एक स्वस्थ जीवन जी सकते है।

जानिए नवग्रह के प्रमुख नवरत्न

  • सूर्य-माणिक,
  • चंद्र-मोती,
  • मंगल-मूंगा,
  • बुध-पन्ना,
  • गुरु-पुखराज,
  • शुक्र-हीरा,
  • शनि-नीलम,
  • राहू-लहसुनिया,
  • केतु-लाजावत।

अगर मेष, सिंह और धनु राशि वाले कोई भी नग पहने तो उन्हें चांदी में पहनना जरुरी होता है। क्योकि चांदी की तासीर ठंडी होती है।

अगर कर्क, वृश्चिक, मीन, कुंभ राशि वाले कोई भी नग पहने तो सोने में धारण कर लेना चाहिए। मंगल का रत्न हमेशा तांबे में धारण करना चाहिए क्योकि इन धातुओं की तासीर गर्म है  राशियों की तासीर ठंडी है। इन्ही कारणों से इन तासीर वालों को जो शीत विकार होते है उनको जल्दी ही लाभ होगा। धातु का लाभ 50 परसेंट तक होता है और रत्नों का शत प्रतिशत लाभ होता है।

जानिए रत्न कैसे रोगो का उपचार करने में सहायक होते है?

  • ऐसा माना जाता है कि हीरे की भस्म से  क्षयरोग, जलोदर, मधुमेह, भगंदर, रक्ताल्पता, सूजन आदि रोग दूर होते हैं।
  • माणक की भस्म से जलन और इर्रिटेशन दूर होती है। माणक रक्तवर्धक और वायुनाशक है।
  • कैल्शियम की कमी के कारण उत्पन्न रोगों में मोती बहुत लाभकारी होता है।
  • एस्ट्रोलॉजी कंसल्टेंसी के अनुसार मूंगे को केवड़े में घिसकर गर्भवती के पेट पर लेप लगाने से गिरता हुआ गर्भ रुक जाता है। मूंगे को गुलाब जल में बारीक पीसकर छाया में सुखाकर शहद के साथ सेवन करने से शरीर पुष्ट बनता है।
  • पन्ने को गुलाब जल या केवड़े के जल में घोटकर उपयोग में ले सकते है। इसकी मदद से मूत्र रोग, रक्त व्याधि और हृद्य रोगों में लाभदायक होता है।
  • पुखराज को गुलाबजल या केवड़े में 25 दिन तक घोटा जाए और जब यह काजल की तरह पिस जाए तो इसे छाया में सुखा लें। यह पीलिया,आमवात, खांसी, श्वास कष्ट, आदि रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है।

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