यदि आप 30 पारंपरिक खाद्य पदार्थों को स्वीकार करते हैं, तो आपको सेहत के साथ-साथ धन की भी प्राप्ति होगी।

यदि आप 30 पारंपरिक खाद्य पदार्थों को स्वीकार करते हैं, तो आपको सेहत के साथ-साथ धन की भी प्राप्ति होगी।

यदि आप 30 पारंपरिक खाद्य पदार्थों को स्वीकार करते हैं, तो आपको सेहत के साथ-साथ धन की भी प्राप्ति होगी।

        
भोजन के नियम: भोजन के संबंध में कुछ नियम और स्वास्थ्य से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें हिंदू शास्त्रों और आयुर्वेद में बताई गई हैं। इन बातों का पालन सभी प्राचीन काल से करते आ रहे हैं, लेकिन आधुनिक समय में यह सब पीछे छूट गया है। अब पश्चिमी खान-पान को अपनाकर लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। अगर आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहते हैं, तो इन 30 पारंपरिक खाद्य व्यंजनों पर विचार करें।                                                                                    
                      
1. भोजन का एक निश्चित समय निर्धारित करें। सुबह-शाम भोजन करने का यही नियम है क्योंकि पाचन की जठर अग्नि सूर्योदय के 2 घंटे बाद तक और सूर्यास्त के 2.30 घंटे पहले तक तेज रहती है। जो केवल एक बार खाता है उसे योगी और जो दो बार खाता है उसे भोगी कहा जाता है। दिन में दो बार भोजन करने वाले व्यक्ति को समय का पाबंद होना चाहिए।

2. हमेशा तांबे के बर्तन में पानी रखें और तांबे के गिलास में पानी पिएं। बारिश का पानी सबसे अच्छा होता है, नदी का पानी मध्यम और कुएं का पानी होता है, तालाब का पानी सबसे कम माना जाता है, जिसे छानकर पीना चाहिए।        

3. भोजन हमेशा पीतल या चांदी की थाली में रखना चाहिए। भोजन को काले, आप या खाखरा के पत्तों पर रखकर भी खाया जा सकता है। जर्मन और कांसे के बर्तनों में खाना वर्जित है।

4. अच्छा, शुद्ध, सात्विक और संपूर्ण भोजन करें। अपने भोजन में दही, सलाद, अनार, हरी पत्तेदार सब्जियां, लहसुन, बीन्स, फल और सूखे भोजन का प्रयोग करें। जीवन भर चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक, मैदा और इसी तरह के अन्य पेय पदार्थों का त्याग करें। कभी भी भारी भोजन न करें। बहुत मसालेदार या बहुत मीठा खाना न खाएं। किसी का बचा हुआ खाना न खाएं। आधा खाया हुआ फल, मिठाई आदि दोबारा नहीं खाना चाहिए।
        
5. ग्रीष्मकाल में मिट्टी के घड़े या चांदी के घड़े में पानी पीना चाहिए, सर्दियों में सोने या पीतल के घड़े में पानी पीना चाहिए और बारिश में तांबे के घड़े का पानी पीना चाहिए। जहाँ पानी रखा गया है वह स्थान ईशान कोण का हो तथा साफ-सुथरा होना चाहिए। पानी की शुद्धता जरूरी है।

6. भोजन की थाली को पाट पर रखकर भोजन किसी कुश के आसन पर सुखासन में (आल्की-पाल्की मारकर) बैठकर ही करना चाहिए। खड़े-खड़े, जूते पहनकर सिर ढंककर भोजन नहीं करना चाहिए।
        
7. भोजन से 1 घंटे पहले और भोजन के कम से कम एक घंटे बाद पानी पीना सबसे अच्छा है। भोजन के समय भी पानी नहीं पीना चाहिए। भोजन से पहले, बीच में मध्यम और भोजन के बाद कम से कम पानी का सेवन करना सबसे अच्छा माना जाता है।

8. भोजन 5 अंगों (2 हाथ, 2 पैर, मुंह) को धो कर ही खाना चाहिए।

9. जो रसोइया खाना बनाता है, वह मन्त्र जाप करते हुए शुद्ध मन से स्नान करके ही रसोई में भोजन बनाता है।

10. भोजन को बिस्तर पर हाथ में रखकर टूटे हुए बर्तन में नहीं रखना चाहिए।

11. पीपल, बरगद के पेड़ के नीचे, कलह के माहौल में, उच्च शोर में, मल की भीड़ होने पर भोजन नहीं करना चाहिए।

12. परोसे गए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीनता और द्वेष से खाया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है। खाना खाते समय चुप रहना फायदेमंद होता है।
 
13. अँगूठे के साथ चारों अंगुलियों को मिलाकर भोजन करना चाहिए।

14. भोजन भोजन कक्ष में ही करना चाहिए। परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ भोजन करना चाहिए।

15. भोजन के बाद घुड़सवारी, दौड़ना, बैठना, शौच आदि नहीं करना चाहिए। अगर आप बैठना चाहते हैं तो कुछ देर वज्रासन की स्थिति में बैठ जाएं। भोजन के बाद दिन में टहलना और रात में सौ कदम चलना, बायीं करवट लेटना या वज्रासन में बैठना भोजन के पाचन में सहायक होता है। भोजन के एक घंटे बाद मीठा दूध और फल खाने से भोजन का पाचन बेहतर होता है।

16. भोजन के बाद थाली या थाली में हाथ धोना भोजन का अपमान माना जाता है। प्लेट पर कोई अवशेष कभी न छोड़ें। खाना खाने के बाद कभी भी थाली को , बिस्तर या टेबल के नीचे न रखें। रात के समय घर में खाने के गंदे बर्तन न रखें। इसी तरह के और भी कई नियमों का पालन करना चाहिए है।

17. भोजन से पहले मसालेदार भोजन करें क्योंकि यह आपके पाचन तंत्र को सक्रिय बनाता है। भोजन के बाद मीठा खाने की परंपरा है। यह भी कहा जाता है कि पहले मिठाई खानी चाहिए, फिर नमकीन और अंत में कड़वी। हालाँकि, इसकी पुष्टि किसी आयुर्वेदाचार्य से करें।

18. भोजन करने से पहले गाय, कुत्ते और कौवे या ब्रह्मा, विष्णु और महेश के नाम से तीन कोल निकालकर एक थाली में रख देना चाहिए।

19. पानी को छानकर हमेशा बैठकर पीना चाहिए। गिलास में ही पानी पीना चाहिए। अंजुली में भरकर पीने वाले पानी में मिठास पैदा होती है।

20. भोजन से पहले अन्नपूर्णा देवी की स्तुति और उनका धन्यवाद करते हुए भोजन करना चाहिए, और भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि 'सभी भूखे को भोजन मिले'।

21. किचन में बैठकर सबके साथ खाना खाएं। परिवार के सभी सदस्यों के साथ बैठकर भोजन करने का प्रयास करना चाहिए। नियमों के अनुसार अलग-अलग भोजन करने से परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और एकता स्थापित नहीं हो सकती।

22. भोजन पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही करना चाहिए। दक्षिण दिशा में परोसा जाने वाला भोजन प्रेत को प्राप्त होता है। पश्चिम दिशा में बना खाना खाने से रोग बढ़ता है।

23. एक बार खाना छोड़कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए। जो ढिंढोरा पीटकर खाना खिला रहा हो, वहां कभी भी खाना न खाएं।

24. किसी पशु या कुत्ते का छुआ हुआ, रजस्वला स्त्री का परोसा हुआ, श्राद्ध का निकाला हुआ, मुंह से फूंक मारकर ठंडा किया हुआ है, और बाल गिरे हुए भोजन को कभी नहीं खाना चाहिए। कभी भी बेईमानी, बेईमानी से परोसा गया खाना नहीं खाना चाहिए। कंजूस का, राजा का, वेश्या का, शराब के विक्रेता का और अपने हित के व्यवसाय करने वाले का भोजन कभी नहीं करना चाहिए।

25. भोजन करते समय चुप रहें। बोलना जरूरी हो तो सकारात्मक बातें ही करें। भोजन करते समय किसी भी प्रकार की समस्या पर चर्चा न करें।

26. रात को भरपेट भोजन न करें। खाना बहुत चबा चबा कर खाएं। गृहस्थ को 32 ग्राम से अधिक नहीं खाना चाहिए। सबसे पहले रसदार, बीच में गाढ़ा और अंत में तरल पदार्थ लें। जो कम खाता है उसे आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुन्दर सन्तान और सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।

27. रात के समय दही, सत्तू, तिल और गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए।

28. शहद और घी का सेवन बराबर मात्रा में नहीं करना चाहिए। जीला का सेवन सरसों के साथ नहीं करना चाहिए। ऐसे कई पदार्थ हैं जिनका सेवन उचित मात्रा में ही करना चाहिए।
 
29. भोजन का चयन तिथि और माह जानने के बाद ही करना चाहिए। उदाहरण के लिए नवमी के दिन लौकी नहीं खानी चाहिए।
 
30. भोजन का उचित संयोजन भी जानना चाहिए। जैसे बैगन के साथ दही नहीं खाना चाहिए, दूध के साथ नमक, दही, खट्टे पदार्थ, मछली या कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए। खिचड़ी को दूध और खीर के साथ नहीं खाना चाहिए।